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श्लोक 29
श्लोक
5.20.29
चारुस्मिते चारुदति चारुनेत्रे विलासिनि।
मनो हरसि मे भीरु सुपर्ण: पन्नगं यथा॥ २९॥
अनुवाद
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चारु मुस्कान, सुंदर दांत और मनमोहक आंखों वाली विलासिनी! तुम जिस तरह से मेरे मन को हर लेती हो, उसी तरह गरुड़ सांप को उठा ले जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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