श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  5.20.28 
 
 
न चापि मम हस्तात् त्वां प्राप्तुमर्हति राघव:।
हिरण्यकशिपु: कीर्तिमिन्द्रहस्तगतामिव॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  राम मेरे हाथ से तुम तक नहीं पहुँच सकते, जिस तरह हिरण्यकशिपु इंद्र के हाथ से कीर्ति को प्राप्त नहीं कर सका था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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