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श्लोक 27
श्लोक
5.20.27
नहि वैदेहि रामस्त्वां द्रष्टुं वाप्युपलभ्यते।
पुरोबलाकैरसितैर्मेघैर्ज्योत्स्नामिवावृताम्॥ २७॥
अनुवाद
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विदेह नन्दिनी! तुम्हें राम न तो देख सकते हैं और न ही तुम्हें पा सकते हैं, क्योंकि तुम बगुलों की पंक्तियों से घिरे काले बादलों द्वारा ढकी चांदनी के समान हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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