श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  5.20.23 
 
 
भुङ्क्ष्व भोगान् यथाकामं पिब भीरु रमस्व च।
यथेष्टं च प्रयच्छ त्वं पृथिवीं वा धनानि च॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  निर्भय होकर अपनी इच्छा अनुसार तरह-तरह के सुखों का भोग करो, दिव्य रस का पान करो, भ्रमण करो और पृथ्वी या धन का भरपूर दान करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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