साधु पश्यामि ते रूपं सुयुक्तं प्रतिकर्मणा।
प्रतिकर्माभिसंयुक्ता दाक्षिण्येन वरानने॥ २२॥
अनुवाद
हे सुमुखी! आज मैं देख रहा हूं तुम्हारे विरह में मेरी रचना के समान ही तुमने भी साज-श्रृंगार से अपने रूप को सजाया है। तुम कृपालु होकर श्रृंगार से सुशोभित हुई हो, इसलिए मैं तुम्हें दंडवत करता हूं।