वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन
»
श्लोक 17
श्लोक
5.20.17
लोकेभ्यो यानि रत्नानि सम्प्रमथ्याहृतानि मे।
तानि ते भीरु सर्वाणि राज्यं चैव ददामि ते॥ १७॥
अनुवाद
play_arrowpause
भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है! मैंने विभिन्न लोकों से बहुत से रत्न एकत्र किए हैं, वे सभी तुम्हारे होंगे। यहाँ तक कि मैं अपना राज्य भी तुम्हें समर्पित कर दूँगा।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.