वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन
»
श्लोक 14
श्लोक
5.20.14
त्वां समासाद्य वैदेहि रूपयौवनशालिनीम्।
क: पुनर्नातिवर्तेत साक्षादपि पितामह:॥ १४॥
अनुवाद
play_arrowpause
हे विदेहराज की पुत्री सीते! रूप और यौवन से सुशोभित होने वाली तुमको पाकर कौन ऐसा पुरुष होगा, जो धैर्य से विचलित न होगा। भले ही वह स्वयं ब्रह्मा क्यों न हो।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.