श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  5.20.14 
 
 
त्वां समासाद्य वैदेहि रूपयौवनशालिनीम्।
क: पुनर्नातिवर्तेत साक्षादपि पितामह:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  हे विदेहराज की पुत्री सीते! रूप और यौवन से सुशोभित होने वाली तुमको पाकर कौन ऐसा पुरुष होगा, जो धैर्य से विचलित न होगा। भले ही वह स्वयं ब्रह्मा क्यों न हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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