श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 17: भयंकर राक्षसियों से घिरी हुई सीता के दर्शन से हनुमान जी का प्रसन्न होना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  5.17.1 
 
 
तत: कुमुदखण्डाभो निर्मलं निर्मलोदय:।
प्रजगाम नभश्चन्द्रो हंसो नीलमिवोदकम्॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  तदुपरांत वह दिन बीत गया और कुमुद के फूलों के समूह के समान सफेद रंग वाले और निर्मल रूप से उदित हुए चन्द्रमा स्वच्छ आकाश में कुछ ऊपर की ओर चढ़ आए। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो कोई हंस नीले रंग के जलराशि में तैर रहा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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