श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 1: हनुमान् जी के द्वारा समुद्र का लङ्घन, मैनाक के द्वारा उनका स्वागत, सुरसा पर उनकी विजय तथा सिंहिका का वध,लंका की शोभा देखना  »  श्लोक 166-167
 
 
श्लोक  5.1.166-167 
 
 
तद् दृष्ट्वा व्यादितं त्वास्यं वायुपुत्र: स बुद्धिमान्।
दीर्घजिह्वं सुरसया सुभीमं नरकोपमम्॥ १६६॥
स संक्षिप्यात्मन: कायं जीमूत इव मारुति:।
तस्मिन् मुहूर्ते हनुमान् बभूवाङ्गुष्ठमात्रक:॥ १६७॥
 
 
अनुवाद
 
  देखिए, सुरसा का वह फैलाया हुआ विशाल जिह्वा से युक्त और नरक के समान अत्यन्त भयंकर मुँह देखकर बुद्धिमान वायुपुत्र हनुमान ने तुरंत क्या किया? उन्होंने अपने शरीर को मेघ की तरह सिकोड़ लिया और एक पल में ही अँगूठे के बराबर छोटे हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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