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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 21: हनुमान जी का तारा को समझाना और तारा का पति के अनुगमन का ही निश्चय करना
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श्लोक 3
श्लोक
4.21.3
शोच्या शोचसि कं शोच्यं दीनं दीनानुकम्पसे।
कश्च कस्यानुशोच्योऽस्ति देहेऽस्मिन् बुद्बुदोपमे॥ ३॥
अनुवाद
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आप स्वयं शोचनीय हो, तो फिर आप किस दूसरे को शोचनीय समझकर शोक कर रही हैं? आप स्वयं दीन होकर दूसरे दीन पर दया कैसे कर सकती हैं? पानी के बुलबुले के समान इस शरीर में रहकर कौन जीव किस जीव के लिए शोचनीय है?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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