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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 21: हनुमान जी का तारा को समझाना और तारा का पति के अनुगमन का ही निश्चय करना
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श्लोक 2
श्लोक
4.21.2
गुणदोषकृतं जन्तु: स्वकर्म फलहेतुकम्।
अव्यग्रस्तदवाप्नोति सर्वं प्रेत्य शुभाशुभम्॥ २॥
अनुवाद
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देवी! गुणों या अवगुणों से प्रेरित होकर जीव जो भी कर्म करता है, वही उसके सुख-दुख का कारण होता है। मृत्यु के बाद प्रत्येक प्राणी शांति से रहता है और अपने सभी अच्छे और बुरे कर्मों का फल भोगता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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