मेरे लिये वानरराज श्री राम के साथ रहने से श्रेष्ठ कोई भी कार्य इस लोक या परलोक में नहीं है। युद्ध में वीरता से मरे हुए अपने स्वामी के द्वारा सेवित चिता की शय्या पर सोना ही मेरे लिये सर्वथा उचित है।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे एकविंश: सर्ग: ॥ २ १॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें इक्कीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ २ १॥