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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 20: तारा का विलाप
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श्लोक 7
श्लोक
4.20.7
व्यक्तमद्य त्वया वीर धर्मत: सम्प्रवर्तता।
किष्किन्धेव पुरी रम्या स्वर्गमार्गे विनिर्मिता॥ ७॥
अनुवाद
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वीरवर! धर्मपूर्वक युद्ध कर आपने तो स्वर्ग जाने के मार्ग में ही किष्किन्धा की तरह कोई रमणीय नगरी बना ही ली है, यह बात आज स्पष्ट हो गई है (अन्यथा आप किष्किन्धा छोड़कर यहाँ क्यों सो रहे होते)।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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