श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 20: तारा का विलाप  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  4.20.26 
 
 
तथा तु तारा करुणं रुदन्ती
भर्तु: समीपे सह वानरीभि:।
व्यवस्यत प्रायमनिन्द्यवर्णा
उपोपवेष्टुं भुवि यत्र वाली॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  तारा अपनी अन्य वानर पत्नियों के साथ अपने प्रिय पति के शव के निकट बैठकर विलाप कर रही थी, और उसने उसी स्थान पर आमरण अनशन करके अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे विंश: सर्ग:॥ २०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें बीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ २०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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