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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 25
श्लोक
4.20.25
यद्यप्रियं किंचिदसम्प्रधार्य
कृतं मया स्यात् तव दीर्घबाहो।
क्षमस्व मे तद्धरिवंशनाथ
व्रजामि मूर्ध्ना तव वीर पादौ॥ २५॥
अनुवाद
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मैंने नासमझी के कारण यदि आपको कोई कष्ट या अपराध पहुँचाया हो तो हे दीर्घबाहु! आप उसे क्षमा कर दें। हे वानरवंश के स्वामी, वीर आर्यपुत्र! मैं आपके चरणों में मस्तक रखकर यह प्रार्थना करती हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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