श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 20: तारा का विलाप  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  4.20.16 
 
 
वैधव्यं शोकसंतापं कृपणाकृपणा सती।
अदु:खोपचिता पूर्वं वर्तयिष्याम्यनाथवत्॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  (फिर वाली से बोली-) मैंने कभी दीनता से भरा जीवन नहीं जिया, इस तरह के बड़े दुख का सामना नहीं किया; परंतु आज आपके बिना मैं दीन हो गई, अब मुझे एक अनाथ की तरह शोक-संताप से भरा वैधव्य जीवन व्यतीत करना होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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