वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 20: तारा का विलाप
»
श्लोक 16
श्लोक
4.20.16
वैधव्यं शोकसंतापं कृपणाकृपणा सती।
अदु:खोपचिता पूर्वं वर्तयिष्याम्यनाथवत्॥ १६॥
अनुवाद
play_arrowpause
(फिर वाली से बोली-) मैंने कभी दीनता से भरा जीवन नहीं जिया, इस तरह के बड़े दुख का सामना नहीं किया; परंतु आज आपके बिना मैं दीन हो गई, अब मुझे एक अनाथ की तरह शोक-संताप से भरा वैधव्य जीवन व्यतीत करना होगा।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.