श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 20: तारा का विलाप  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  4.20.13 
 
 
रूपयौवनदृप्तानां दक्षिणानां च मानद।
नूनमप्सरसामार्य चित्तानि प्रमथिष्यसि॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  निश्चय ही रूप-यौवन के अभिमान से भरी हुई दाक्षिणात्य अप्सराएँ आपके दिव्य सौन्दर्य को देखकर अपने मन में मोह उत्पन्न करने लगेंगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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