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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 10
श्लोक
4.20.10
हृदयं सुस्थितं मह्यं दृष्ट्वा निपतितं भुवि।
यन्न शोकाभिसंतप्तं स्फुटतेऽद्य सहस्रधा॥ १०॥
अनुवाद
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निश्चय ही मेरा हृदय पत्थर समान कठोर है जो आज मैं आपको पृथ्वी पर पड़े हुए देख रहा हूँ, फिर भी शोक और पीड़ा की तीव्रता मेरे हृदय को चीर नहीं पाई है। मेरे हृदय के हज़ारों टुकड़े नहीं हुए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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