तारा, चन्द्रमुखी स्टार, ने देखा कि उसके स्वामी, वानरराज वाली, श्रीरामचंद्रजी के बाण से घायल होकर धरती पर पड़े हैं। वह जल्दी से उसके पास पहुँची और उसके शरीर से लिपट गई। वानरराज, जिनका शरीर हाथियों और पहाड़ों से भी बड़ा था, अब बाण से घायल होकर एक उखड़े हुए पेड़ की तरह जमीन पर पड़े थे। तारा का दिल दुःख से भर गया और वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।