श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 2: सुग्रीव तथा वानरों की आशङ्का, हनुमान्जी द्वारा उसका निवारण तथा सुग्रीव का हनुमान जी को श्रीराम-लक्ष्मण के पास उनका भेद लेने के लिये भेजना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  4.2.29 
 
 
तथेति सम्पूज्य वचस्तु तस्य
कपे: सुभीतस्य दुरासदस्य।
महानुभावो हनुमान् ययौ तदा
स यत्र रामोऽतिबली सलक्ष्मण:॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  अत्यंत भयभीत परन्तु अजेय वानर सुग्रीव के उस वचन का सम्मान करके और "बहुत अच्छा है" कहकर महापराक्रमी हनुमान जी तुरंत उस स्थान के लिए चल दिए जहाँ अतिशय शक्तिशाली श्रीराम और लक्ष्मण विराजमान थे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे द्वितीय: सर्ग: ॥ २ ॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें दूसरा सर्ग पूरा हुआ ॥ २ ॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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