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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 2: सुग्रीव तथा वानरों की आशङ्का, हनुमान्जी द्वारा उसका निवारण तथा सुग्रीव का हनुमान जी को श्रीराम-लक्ष्मण के पास उनका भेद लेने के लिये भेजना
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श्लोक 21
श्लोक
4.2.21
वालिप्रणिहितावेव शङ्केऽहं पुरुषोत्तमौ।
राजानो बहुमित्राश्च विश्वासो नात्र हि क्षम:॥ २१॥
अनुवाद
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मेरा मन कहता है कि ये दोनों श्रेष्ठ पुरुष वाली द्वारा ही भेजे गये हैं क्योंकि राजाओं के बहुत से मित्र होते हैं। इसलिए उन पर विश्वास करना उचित नहीं है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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