अहो शाखामृगत्वं ते व्यक्तमेव प्लवङ्गम।
लघुचित्ततयाऽऽत्मानं न स्थापयसि यो मतौ॥ १७॥
अनुवाद
अरे वानरराज! तुम्हारी बन्दर वाली फुर्ती तो इस समय स्पष्ट रूप से प्रकट हो ही गई है। तुम्हारा मन चंचल है। इसलिए तुम अपने आप को विचारों की धारा में स्थिर नहीं रख पाते हो।