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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 2: सुग्रीव तथा वानरों की आशङ्का, हनुमान्जी द्वारा उसका निवारण तथा सुग्रीव का हनुमान जी को श्रीराम-लक्ष्मण के पास उनका भेद लेने के लिये भेजना
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श्लोक 14
श्लोक
4.2.14
सम्भ्रमस्त्यज्यतामेष सर्वैर्वालिकृते महान्।
मलयोऽयं गिरिवरो भयं नेहास्ति वालिन:॥ १४॥
अनुवाद
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इस महान भय को छोड़ दो जो वाली के कारण हुआ है। यह मलय नामक श्रेष्ठ पर्वत है। यहाँ वाली से कोई डर नहीं है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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