श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 93: सेना सहित भरत की चित्रकूट-यात्रा का वर्णन  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  2.93.6 
 
 
स गत्वा दूरमध्वानं सम्परिश्रान्तवाहन:।
उवाच वचनं श्रीमान् वसिष्ठं मन्त्रिणां वरम्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  जब श्रीमान भरत की सवारियाँ दूर तक का रास्ता तय करके बहुत थक गईं, तो उन्होंने मंत्रियों में श्रेष्ठ वसिष्ठ जी से कहा-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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