श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 93: सेना सहित भरत की चित्रकूट-यात्रा का वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.93.4 
 
 
सागरौघनिभा सेना भरतस्य महात्मन:।
महीं संछादयामास प्रावृषि द्यामिवाम्बुद:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  महात्मा भरत की विशाल सेना ने, जो समुद्र के समान विशाल और शक्तिशाली थी, अपने चारों ओर फैलकर पूरे क्षेत्र को कवर कर लिया, जैसे वर्षा ऋतु में मेघों की घटा आकाश को ढक लेती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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