सागरौघनिभा सेना भरतस्य महात्मन:।
महीं संछादयामास प्रावृषि द्यामिवाम्बुद:॥ ४॥
अनुवाद
महात्मा भरत की विशाल सेना ने, जो समुद्र के समान विशाल और शक्तिशाली थी, अपने चारों ओर फैलकर पूरे क्षेत्र को कवर कर लिया, जैसे वर्षा ऋतु में मेघों की घटा आकाश को ढक लेती है।