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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 93: सेना सहित भरत की चित्रकूट-यात्रा का वर्णन
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श्लोक 3
श्लोक
2.93.3
स सम्प्रतस्थे धर्मात्मा प्रीतो दशरथात्मज:।
वृतो महत्या नादिन्या सेनया चतुरङ्गया॥ ३॥
अनुवाद
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धर्मनिष्ठ दशरथ-पुत्र भरत उस महान् कोलाहल करती चतुरंगिणी सेना से घिरे हुए प्रसन्नतापूर्वक यात्रा कर रहे थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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