श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 93: सेना सहित भरत की चित्रकूट-यात्रा का वर्णन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.93.27 
 
 
व्यवस्थिता या भरतेन सा चमू-
र्निरीक्षमाणापि च भूमिमग्रत:।
बभूव हृष्टा नचिरेण जानती
प्रियस्य रामस्य समागमं तदा॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  भरत के द्वारा वहाँ नियुक्त की गई वह सेना आगे की भूमिका का निरीक्षण करती हुई भी वहाँ हर्षपूर्वक खड़ी रही; क्योंकि उसे शीघ्र ही श्रीरामचन्द्र जी से मिलने का अवसर मिलने वाला था।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे त्रिनवतितम: सर्ग:॥ ९३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें तिरानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ९३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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