व्यवस्थिता या भरतेन सा चमू-
र्निरीक्षमाणापि च भूमिमग्रत:।
बभूव हृष्टा नचिरेण जानती
प्रियस्य रामस्य समागमं तदा॥ २७॥
अनुवाद
भरत के द्वारा वहाँ नियुक्त की गई वह सेना आगे की भूमिका का निरीक्षण करती हुई भी वहाँ हर्षपूर्वक खड़ी रही; क्योंकि उसे शीघ्र ही श्रीरामचन्द्र जी से मिलने का अवसर मिलने वाला था।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे त्रिनवतितम: सर्ग:॥ ९३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें तिरानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ९३॥