श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 93: सेना सहित भरत की चित्रकूट-यात्रा का वर्णन  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  2.93.25 
 
 
यत्ता भवन्तस्तिष्ठन्तु नेतो गन्तव्यमग्रत:।
अहमेव गमिष्यामि सुमन्त्रो धृतिरेव च॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम सभी यहीं ध्यान से रुको! यहाँ से आगे मत जाओ। अब मैं स्वयं वहाँ जाऊँगा। साथ में सुमन्त्र और धृति भी रहेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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