श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 93: सेना सहित भरत की चित्रकूट-यात्रा का वर्णन  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.93.17 
 
 
एतान् वित्रासितान् पश्य बर्हिण: प्रियदर्शनान्।
एवमापतत: शैलमधिवासं पतत्त्रिण:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  देखो, ये बहुत ही प्यारे लगने वाले मोर कितने भयभीत हैं। वे हमारे सैनिकों के डर से भागे जा रहे हैं। ठीक इसी प्रकार पर्वत पर रहने वाले और पक्षी अपने घरों की ओर उड़ान भर रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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