श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 89: भरत का सेना सहित गङ्गापार करके भरद्वाज के आश्रम पर जाना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  2.89.7 
 
 
सुखा न: शर्वरी धीमन् पूजिताश्चापि ते वयम्।
गङ्गां तु नौभिर्बह्वीभिर्दाशा: संतारयन्तु न:॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  वीर निषादराज! आपने हमारी रात को बहुत ही सुखद बना दिया है। आपने सत्कार किया है। अब आप कृपया ऐसी व्यवस्था कीजिए कि आपके नाविक हमें गंगा नदी के उस पार पहुँचाने के लिए बहुत-सी नावों का प्रबंध करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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