श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 89: भरत का सेना सहित गङ्गापार करके भरद्वाज के आश्रम पर जाना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  2.89.5 
 
 
कच्चित् सुखं नदीतीरेऽवात्सी: काकुत्स्थ शर्वरीम्।
कच्चिच्च सहसैन्यस्य तव नित्यमनामयम्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  आपने नदी के तट पर रात आराम से बिताई है न भरतजी? आपकी सेना सहित, कोई भी असुविधा नहीं हुई है? आपका स्वस्थ्य उत्तम है न?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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