श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 89: भरत का सेना सहित गङ्गापार करके भरद्वाज के आश्रम पर जाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  2.89.15 
 
 
आवासमादीपयतां तीर्थं चाप्यवगाहताम्।
भाण्डानि चाददानानां घोषस्तु दिवमस्पृशत्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
   कुछ सैनिकों ने बड़ी-बड़ी मशालें जलाईं और शिविर में छूटी हुई वस्तुओं को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। कुछ लोग जल्दी से नदी तट पर उतरने लगे और कई सैनिक अपने सामान को पहचानकर बोलने लगे, "यह मेरा है, यह मेरा है"। उस समय जो शोरगुल मच गया, वह आकाश में गूँज उठा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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