श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 8-9
 
 
श्लोक  2.88.8-9 
 
 
गीतवादित्रनिर्घोषैर्वराभरणनि:स्वनै:।
मृदङ्गवरशब्दैश्च सततं प्रतिबोधित:॥ ८॥
बन्दिभिर्वन्दित: काले बहुभि: सूतमागधै:।
गाथाभिरनुरूपाभि: स्तुतिभिश्च परंतप:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम अब धरती पर कैसे सो रहे होंगे, जिन्हें गीतों और वाद्यों की ध्वनियों से, श्रेष्ठ आभूषणों की झनकारों से और मृदंगों के मधुर शब्दों से सदा जगाया जाता था? जिनकी समय-समय पर वन्दीगण वंदना करते थे और सूत और मागध उनकी वीरता की गाथाएँ गाते थे और उनकी स्तुति करते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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