श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.88.4 
 
 
अजिनोत्तरसंस्तीर्णे वरास्तरणसंचये।
शयित्वा पुरुषव्याघ्र: कथं शेते महीतले॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  पुरुषसिंह श्रीराम हमेशा अजिन (हिरण की खाल) बिछाकर और अच्छे-अच्छे बिछौनों से सजे हुए पलंग पर सोते रहे हैं। अब वे धरती पर कैसे सो रहे होंगे?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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