श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  2.88.3 
 
 
महाराजकुलीनेन महाभागेन धीमता।
जातो दशरथेनोर्व्यां न राम: स्वप्तुमर्हति॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  महाराजों के कुल में जन्मे बेहद बुद्धिमान महाभाग राजा दशरथ ने जिन श्रीराम को जन्म दिया है, वे इस तरह भूमि पर सोने के योग्य नहीं हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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