श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  2.88.23 
 
 
न च प्रार्थयते कश्चिन्मनसापि वसुंधराम्।
वने निवसतस्तस्य बाहुवीर्याभिरक्षिताम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  वन में निवास करने पर भी उन्हीं श्रीराम के बाहुबल से सुरक्षित हुई इस वसुंधरा को कोई शत्रु मन में भी लेना नहीं चाहता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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