श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  2.88.22 
 
 
अकर्णधारा पृथिवी शून्येव प्रतिभाति मे।
गते दशरथे स्वर्गं रामे चारण्यमाश्रिते॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  दशरथ महाराज स्वर्गलोक चले गए और श्रीराम वनवासी हो गए, इस स्थिति में पृथ्वी नाविक के बिना एक नाव की तरह खाली लग रही है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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