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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना
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श्लोक 16
श्लोक
2.88.16
मन्ये भर्तु: सुखा शय्या येन बाला तपस्विनी।
सुकुमारी सती दु:खं न विजानाति मैथिली॥ १६॥
अनुवाद
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मैं मानता हूँ कि पति की शय्या चाहे नर्म हो या कठोर, सती स्त्रियों के लिए सुख देने वाली होती है। तभी तो यह तपस्विनी और कोमल बालिका सतीसाध्वी मिथिलेश कुमारी सीता यहाँ दुःख का अनुभव नहीं कर रही हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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