श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  2.88.14 
 
 
मन्ये साभरणा सुप्ता सीतास्मिन्शयने शुभा।
तत्र तत्र हि दृश्यन्ते सक्ता: कनकबिन्दव:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  ऐसा प्रतीत होता है कि शुभलक्षणा सीता अपने शयनकक्ष में आभूषण पहने ही सोई हुई थीं; क्योंकि यहाँ इधर-उधर सोने के टुकड़े बिखरे हुए दिखाई दे रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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