श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  2.88.13 
 
 
इयं शय्या मम भ्रातुरिदमावर्तितं शुभम्।
स्थण्डिले कठिने सर्वं गात्रैर्विमृदितं तृणम्॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  वह शय्या मेरे बड़े भाई की है जहाँ वो सोया करते थे और करवटें लेते थे। यह एक कठोर वेदी है जहाँ उनका शुभ शयन हुआ था। उनके शरीर के नीचे दबा हुआ सारा तृण अभी भी यहाँ पड़ा हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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