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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना
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श्लोक 10
श्लोक
2.88.10
अश्रद्धेयमिदं लोके न सत्यं प्रतिभाति मा।
मुह्यते खलु मे भाव: स्वप्नोऽयमिति मे मति:॥ १०॥
अनुवाद
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यह बात दुनिया में विश्वास के योग्य नहीं है। यह मुझे सच नहीं लग रहा है। मेरा दिल भीतर ही भीतर बहक रहा है। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि यह कोई सपना है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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