श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  2.88.1 
 
 
तच्छ्रुत्वा निपुणं सर्वं भरत: सह मन्त्रिभि:।
इङ्गुदीमूलमागम्य रामशय्यामवैक्षत॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  निपुणता से सब कुछ सुनने के पश्चात् भरत ने मंत्रियों के साथ इंगुदी वृक्ष की जड़ के पास पहुँचकर श्री रामचंद्र जी की शय्या का निरीक्षण किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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