श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  2.87.8 
 
 
वत्सला स्वं यथा वत्समुपगुह्य तपस्विनी।
परिपप्रच्छ भरतं रुदती शोकलालसा॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  तपस्विनी कौसल्या भरत को अपनी गोद में लेकर रोती हुई और उनसे पूछती हुई, उस तरह शोक से व्याकुल थीं जैसे एक वात्सल्यपूर्ण गाय अपने बछड़े को गले लगाकर चाटती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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