श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  2.87.7 
 
 
ताश्च तं पतितं भूमौ रुदत्य: पर्यवारयन्।
कौसल्या त्वनुसृत्यैनं दुर्मना: परिषस्वजे॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  भरत के भूमि पर गिर जाते ही सभी रानियाँ उनके चारों ओर आ गईं और रोने लगीं। कौशल्या का हृदय दु:ख से और भी कातर हो उठा। वे भरत के पास गईं और उन्हें अपनी गोद में बैठा लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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