वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना
»
श्लोक 6
श्लोक
2.87.6
तत: सर्वा: समापेतुर्मातरो भरतस्य ता:।
उपवासकृशा दीना भर्तृव्यसनकर्शिता:॥ ६॥
अनुवाद
play_arrowpause
तदनंतर भरत जी की समस्त माताएं वहाँ आ पहुंचीं। वे सभी अपने पति के वियोग के दुःख से दुखी थीं, उपवास करने के कारण दुर्बल थीं और दीन भी लग रही थीं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.