श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  2.87.6 
 
 
तत: सर्वा: समापेतुर्मातरो भरतस्य ता:।
उपवासकृशा दीना भर्तृव्यसनकर्शिता:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर भरत जी की समस्त माताएं वहाँ आ पहुंचीं। वे सभी अपने पति के वियोग के दुःख से दुखी थीं, उपवास करने के कारण दुर्बल थीं और दीन भी लग रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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