तत्पश्चात मैं भी उत्तम बाण और धनुष लेकर वहीं स्थित हो गया जहाँ लक्ष्मण थे। उस समय मैं अपने भाई-बंधुओं के साथ जो नींद और आलस्य को त्यागकर अपने धनुष-बाण लिए लगातार सावधान रहते थे, देवराज इंद्र की तरह तेज से चमकते श्रीराम की रक्षा करता था।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे सप्ताशीतितम: सर्ग:॥ ८७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें सतासीवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ८७॥