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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना
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श्लोक 23
श्लोक
2.87.23
नियम्य पृष्ठे तु तलाङ्गुलित्रवान्
शरै: सुपूर्णाविषुधी परंतप:।
महद्धनु: सज्जमुपोह्य लक्ष्मणो
निशामतिष्ठत् परितोऽस्य केवलम्॥ २३॥
अनुवाद
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शत्रुओं को पीड़ा देने वाले लक्ष्मण अपनी पीठ पर तीरों से भरे दो तरकस बाँधकर और दोनों हाथों की उँगलियों में दस्ताने पहनकर, महान धनुष चढ़ाकर श्रीराम के चारों ओर घूमते हुए पूरी रात पहरा देते रहे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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