श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.87.17 
 
 
नह्यस्माभि: प्रतिग्राह्यं सखे देयं तु सर्वदा।
इति तेन वयं सर्वे अनुनीता महात्मना॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘फिर उन महात्माने हम सब लोगोंको समझाते हुए कहा—‘सखे! हम-जैसे क्षत्रियोंको किसीसे कुछ लेना नहीं चाहिये; अपितु सदा देना ही चाहिये’॥ १७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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