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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना
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श्लोक 15
श्लोक
2.87.15
अन्नमुच्चावचं भक्ष्या: फलानि विविधानि च।
रामायाभ्यवहारार्थं बहुशोऽपहृतं मया॥ १५॥
अनुवाद
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मैंने भाँति-भाँति के अन्न, अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ और कई तरह के फल श्रीरामचन्द्रजी को भोजन के लिए प्रचुर मात्रा में पहुँचाए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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