श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  2.87.14 
 
 
सोऽब्रवीद् भरतं हृष्टो निषादाधिपतिर्गुह:।
यद्विधं प्रतिपेदे च रामे प्रियहितेऽतिथौ॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  यह सुनकर निषादराज गुह बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने भरत से कहा कि जब उनके प्रिय अतिथि श्री राम उनके पास आए थे, तो उन्होंने उनसे जिस प्रकार का व्यवहार किया था, वह सब बताते हुए उन्होंने कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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