सोऽब्रवीद् भरतं हृष्टो निषादाधिपतिर्गुह:।
यद्विधं प्रतिपेदे च रामे प्रियहितेऽतिथौ॥ १४॥
अनुवाद
यह सुनकर निषादराज गुह बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने भरत से कहा कि जब उनके प्रिय अतिथि श्री राम उनके पास आए थे, तो उन्होंने उनसे जिस प्रकार का व्यवहार किया था, वह सब बताते हुए उन्होंने कहा।